मैं जब बैठता हूँ तनहाई मैं, अक्सर पुरानी यादें भर लेती हैं मुझे अपने आगोश में,
तनहाई बुला लेती है यादों को अपने घर, रुला देती है, मुस्कुरा देती है सब कुछ भुला कर,
कभी कभी मिलता हूँ यादों में अपनों से, लगता है आज-कल की है बात,
खो जाता हूँ यादों में बनकर एक एहसास..........
तनहाई बैठा लेती है अपने पास कहती कुछ नहीं, बस ख़ामोशी में सुना जाती है अपनी बात!
मेरी तनहाई मुझे होने नहीं देती जुदा, अपनों की यादों से देती है मिला...
तनहाई का क्या भरोसा कब सिमट जाये, कही कोई आकर मेरी तनहाई से मुझे न ले जाये !
तनहाई है एक पल जिसमे है यादों का कल , तनहाई में ढूँढता हूँ में किसी अपने को शायद वह भी ढूंढे
मुझे तनहाई में !!!!!
में जब बैठता हूँ तनहाई में.......................