किरणे खिली, फूल मुस्कुराये ,
जागा मानव जागी धरा ,
लिया कलि कोपल ने नया रूप ,
सूरज की किरणे देती नया जीवन,
हरियाली की चादर ओढ़े धरती लेती अंगढाई,
मनो इठलाती हरियाली ,
झरने बहते कल-कल लेकर जीवन धारा,
मानो धरती के स्तन से बहती अमृत धारा!!!
भोर हुई पंछी चहचहाऍ,
पंछी गुनगुनाते नव गीत सुनते,
विश्वास जागा, लेकर नया लक्ष्य ,
भोर हुई पंछी चहचहाऍ,
भोर हुई पंछी चहचहाऍ,
2 comments:
shabdo ka sahi prayog too good
nice poem
a good start
and welcome in blogsvillie
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